*हनुमानगढ़ की बिगड़ती स्थिति पर गम्भीर नज़र*
हनुमानगढ़ में हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं, ख़ासकर मिनी चंडीगढ़ के सौंदर्यकरण की योजनाओं के बीच। हनुमानगढ़ जंक्शन पर चूना फाटक के पास एक ओवरलोड ट्रक टूटे हुए सड़क मार्ग में बने गढ़े में फंस गया, जिससे आवागमन प्रभावित हुआ। यह घटना एक चेतावनी है कि कैसे उचित सड़क निर्माण और प्रशासन की लापरवाही ने लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है।
इसके बावजूद, यह सौभाग्य की बात रही कि कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। लेकिन यह सवाल उठता है कि किस हद तक हम लापरवाह हो सकते हैं? हनुमानगढ़ की सुनहरी छवि नगर परिषद की भ्रष्टाचार की काली छाया में दबती जा रही है। सड़क पर बने गढ़ों ने इंच-इंच की भूमि को कष्ट और धूल में तब्दील कर दिया है।
नगर परिषद द्वारा हनुमानगढ़ की लगभग ख़ाली पड़ी सारी प्रॉपर्टी को बेचकर रोड़ बनाने का जो काम किया गया, उसने मिनी चंडीगढ़ की छवि को तोड़कर रख दिया है। जब हम सड़कें बनाते हैं, तो यह जरूरी होता है कि उन्हें सही मानकों पर बनाया जाए। योजना विहीन निर्माण ने सिर्फ प्रशासन की पोल खोली है, बल्कि नागरिकों के जीवन को भी प्रभावित किया है।
जिला कलेक्ट्रेट परिसर में बारिश का पानी भरना यह दर्शाता है कि हमने अपने 'राजाओं' का भी ध्यान नहीं रखा। जब अधिकारी खुद इस स्थिति में हैं, तो जनता को बचाने वाला कौन है? यह सोचने वाली बात है। नगर परिषद के अधिकारियों और कर्मचारियों की उदासीनता ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है।
बात केवल हनुमानगढ़ के अंडर पास, गलियों,चक ज्वाल सिंह वाला
और संगरिया रोड की नहीं है, बल्कि यह पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार और लापरवाही ने जनता को रोने पर मजबूर कर दिया है। जब हम आर्थिकता की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि हम सभी का भविष्य इस शहर की हालत पर निर्भर करता है।
हनुमानगढ़ का विकास तभी संभव है जब हम सही कदम उठाएं और हर व्यक्ति को उसके हक का मिल सके। हमें इस स्थिति का बदलाव लाने की जरुरत है, ताकि भविष्य में ऐसा न हो कि हम केवल श्रापित रूप से जीने को मजबूर हो जाएं।
*क्यूॅं न कहूॅं सच*
*हनुमानगढ़ में सड़क निर्माण की स्थिति*
हनुमानगढ़ की सड़कों का हाल चिंताजनक हो चुका है। टूटी-फूटी सड़कों ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी है, और ग्राहक बाजार आने से डरने लगे हैं। हर गड्ढा एक खतरे की घंटी की तरह है, जो यह चेतावनी देता है कि कहीं भी कोई बड़ा हादसा घटित हो सकता है।
राज्य सरकार को इस भयानक संकट की गंभीरता को समझना होगा। क्या वे सच में हनुमानगढ़ की स्थिति से अवगत हैं? यह बेहद आवश्यक है कि सरकार यह देखे कि जो फंड सड़क निर्माण के लिए आवंटित किया जा रहा है, उसका सही उपयोग हो रहा है या नहीं। न केवल सरकार, बल्कि प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
अगर राजनेता नगर परिषद के अधिकारियों से मिलकर समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं, तो इसका मतलब ये हुआ कि कहीं न कहीं उनके भी हित इस सारे खेल में छुपे हुए हैं। जनता रोज़ नए वादों का सामना करती है, लेकिन सच्चाई यही है कि अधिकारियों के पास हमेशा एक बहाना होता है- बजट नहीं आया।
इस स्थिति को देखते हुए, आम जनता लगातार परेशान हो रही है। लोग सड़कों पर चलने से डरते हैं, उन्हें यह भय है कि कोई उनका वाहन पलट सकता है या फिर गिरकर चोटिल हो सकता है। व्यापार की रफ्तार रुकी हुई है, और व्यापारी वर्ग की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
कब तक ऐसा चलेगा? सरकारें चुनाव में जनता से वादे करती हैं लेकिन हनुमानगढ़ में स्थिति यह है कि हर नई सरकार पुराने मुद्दों पर विचार करने के बजाय जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने की बात करती है। इससे साफ है कि सरकारें आज की स्थिति को नजरअंदाज कर रही हैं।
जनता की बेबसी को समझना और सरकारी तंत्र को सजग करना आवश्यक है। हनुमानगढ़ की सड़कों से लोगों का विश्वास उठते जा रहा है। ठेकेदारों से काम के जल्दी होने की उम्मीद करने से बेहतर है कि अदालती कार्रवाई की जाए, जिससे जनता की आवाज़ सुनी जा सके। क्या हनुमानगढ़ के लोग अपनी सड़कों के ठीक होने की आस में बेताबी से इंतज़ार करते रहेंगे?
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