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विश्व हिन्दू परिषद द्वारा मंदिर एवं अर्चक पुरोहित सम्मेलन सम्पन्न










“मंदिर, पुजारी और पुरोहित बंधु ही सनातन संस्कृति का मुख्य आधार है।" — अरुण रामकृष्ण नेटके


विश्व हिन्दू परिषद द्वारा मंदिर एवं अर्चक पुरोहित सम्मेलन सम्पन्न


ब्यूरो रिपोर्ट महेंद्र शर्मा 


श्रीगंगानगर। विश्व हिन्दू परिषद श्रीगंगानगर जिला द्वारा बुधवार को बिहाणी ऑडिटोरियम में मंदिर एवं अर्चक पुरोहित सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में जिलेभर से सैकड़ों पुरोहित, पुजारी, संत, समाजसेवी और धर्मप्रेमी नागरिक शामिल हुए।


"मंदिर केवल ईश्वर का धाम नहीं, संस्कृति का आधार" — अरुण रामकृष्ण नेटके**


मुख्य वक्ता अरुण रामकृष्ण नेटके (अखिल भारतीय मंदिर एवं अर्चक पुरोहित संपर्क प्रमुख) ने अपने ओजस्वी संबोधन में कहा—

“मंदिर प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य चिकित्सा और न्याय के केंद्र रहे हैं। विदेशी आक्रमणकारियों ने सबसे पहले मंदिरों के साथ साथ पुजारी और पुरोहितों पर आघात किया, क्योंकि वे जानते थे कि हिंदू संस्कृति को कमजोर किए बिना भारत को गुलाम नहीं बनाया जा सकता।


आज मंदिरों की संख्या बहुत है, परंतु दुखद यह है कि पुजारियों का जीवन कठिनाई में गुजर रहा है। मंदिरों में भगवान की उपस्थिति का मुख्य कारण भाव पूर्ण पूजा करने वाले पुजारी ही है। लेकिन जिनके कारण मंदिर जीवंत हैं, वही पुजारी आज अपने घर चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद का संकल्प है कि पुजारियों को प्रशिक्षित कर, उनके सम्मान और जीवन स्तर को सुदृढ़ किया जाए। सनातन धर्म का आधार स्तंभ पुरोहित समाज है,उन्हें भी अपने भूमिका के प्रति सजग किया जाए। साथ उन्होंने आग्रह किया कि बड़े और संपन्न मंदिर अपने परिसर के छोटे मंदिरों को आर्थिक सहायता करे। 


 मंदिर द्वारा पंचप्रकल्पों का संचालन हो।  

1. मंदिर समाज के सेवा केंद्र बनें

2. मंदिर समाज के संस्कार केंद्र बनें।

3. मंदिर समाज के बलोपासना केंद्र बनें

4. मंदिर समाज के जागरण केंद्र बनें 

5. मंदिर समाज के प्रचार केंद्र बनें।


विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीगंगानगर विधायक एवं एस.डी. बिहाणी शिक्षा ट्रस्ट के अध्यक्ष जयदीप जी बिहाणी ने कहा—

“हमारे मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं हैं, बल्कि वे समाज में संस्कृति और संस्कारों के प्रेरणा केंद्र हैं। यह सम्मेलन समाज को यह संदेश देता है कि पुरोहित और पुजारी सम्मानित हों, क्योंकि उनका जीवन केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि वे समाज की आत्मा को जीवित रखते हैं।


हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे जिले का कोई भी पुजारी आर्थिक या सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित न रहे। मंदिरों की समृद्धि तभी सार्थक होगी जब पुजारियों का जीवन भी सुरक्षित और सम्मानजनक होगा।” 

श्रीमतभागवत कथावाचक आचार्य महेंद्र मानसमणि जी ने कहा कि—

“यदि धर्म और राष्ट्र सेवा से हम नहीं जुड़ेंगे तो आने वाले समय में ‘जय सियाराम’ कहने वाला भी नहीं मिलेगा। यह जीवन परमात्मा का दिया हुआ पुरस्कार है। हमें अपने कर्म और कर्तव्य से इसे सार्थक बनाना चाहिए। धर्म के लिए जीना ही सच्चा स्वाभिमान है।”

क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री राजाराम जी ने कहा कि मंदिर और पुरोहित समाज का संरक्षण सामूहिक जिम्मेदारी है। विशिष्ट अतिथि श्री सतीश सिंह राव (प्रांत सह मंत्री) ने कहा कि पुरोहित संस्कृति की जड़ हैं, और जब तक यह जड़ सुरक्षित है, कोई भी शक्ति हिंदू समाज को डिगा नहीं सकती।

सम्मेलन की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष उमाशंकर मित्तल ने की, जबकि संचालन मोहन ग्रोवर ने किया।

अंत में जिला मंत्री नरेश चराया ने सभी का आभार व्यक्त किया और यह संकल्प दिलाया कि 

“पुरोहित समाज को संगठित कर उनके सम्मान और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए जिला स्तर पर निरंतर कार्य किया जाएगा।”


सम्मेलन “जय श्रीराम” और “वन्दे मातरम्” के गगनभेदी नारों के साथ सम्पन्न हुआ।

मंच से उठी यह आवाज़ स्पष्ट थी कि सनातन की जड़ को मजबूत रखना है तो पुजारी और पुरोहित बंधुओं को सशक्त करना होगा।

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