हनुमानगढ़ में शराब माफियाओं का आतंक
हनुमानगढ़ में शराब माफियाओं का दबदबा अब असहनीय हो गया है। जिले का प्रशासन और आबकारी अधिकारी इस संकट के सामने नतमस्तक हो गए हैं। अवैध शराब की बिक्री अब एक सामान्य गतिविधि बन गई है। जब भी मीडिया कुछ कार्रवाई की रिपोर्ट करता है, प्रशासन अपनी छवि बचाने के लिए कुछ समय के लिए दुकानों को बंद कर देता है। परंतु अगली सुबह, वही दुकानें फिर से खुल जाती हैं, जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं।
यह सब एक बड़े नाटक का हिस्सा प्रतीत होता है। अधिकारियों द्वारा जब बिंदुवार अवैध बिक्री की जानकारी मिली जाती है, तो शराब दुकान के मालिकों को पहले से ही सूचित कर दिया जाता है। यह स्पष्ट संकेत करता है कि प्रशासन और माफियाओं के बीच एक अनकही समझौता हो चुका है। पत्रकारों को रिपोर्ट न करने के लिए धमकाया जाता है और फ्री शराब के प्रस्ताव दिए जाते हैं। यह हालत दर्शाती है कि माफिया के समक्ष प्रशासन की कोई अहमियत नहीं रह गई है।
पुलिस भी इस संकट में पीछे नहीं रही है। माफियाओं का आरोप है कि हर दुकान से उन्हें महीने के अंत में मोटी रकम मिलती है। यदि यह सत्य है, तो यह पुष्टि है कि प्रशासन पूर्णतः भ्रष्टाचार में लिप्त है। पहले तो श्रीगंगानगर के पुलिस अधीक्षक ने माफियाओं पर शिकंजा कसने का प्रयास किया था, लेकिन हनुमानगढ़ में उनका प्रयास प्रभावी नहीं हो पाया।
सुबह 5 बजे से रात 1 बजे तक खुलेआम शराब की बिक्री चल रही है। आबकारी अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि दुकानें सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक खुल सकती हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि कुछ दुकानों ने 10-10 अवैध शाखाएँ खोल रखी हैं। हनुमानगढ़ में 350 शराब दुकानों के मुकाबले, 5000 से ज्यादा अवैध शाखाएँ चल रही हैं, जो प्रशासन की निष्क्रियता को प्रदर्शित करती हैं।
एक सामान्य नागरिक के रूप में, यह देखना चिंताजनक है कि प्रशासन और पुलिस के बीच मिलीभगत के चलते शराब माफिया अपने कृत्यों में बेखौफ हैं। यह स्थिति न केवल कानून-व्यवस्था को चुनौती देती है, बल्कि समाज के मूल नैतिक सिद्धांतों को भी कमजोर करती है। ऐसे में, हनुमानगढ़ में माफियाओं के खिलाफ ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि नागरिकों में सुरक्षा का भरोसा कायम हो सके।
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