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हनुमानगढ़ की राजनीति और जनता की पीड़ा

 हनुमानगढ़ की राजनीति और जनता की पीड़ा 





हनुमानगढ़, जहां प्रशासन राजनीति के धड़ों में उलझा हुआ है, वहाँ की जनता की पीड़ा अनसुनी रह गई है। हर ओर सिर्फ राजनीतिक खेल चल रहा है, जबकि आम आदमी का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। उनसे सवाल करने वाला कोई नहीं है, और उनकी सच्चाई को नजरअंदाज किया जा रहा है।

प्रशासनिक तंत्र में आई दरारों ने हनुमानगढ़ के विकास को रोक दिया है। सड़कें गड्ढों में और स्कूल सुविधाओं के बिना हैं। जनता की चिंताओं को नकारते हुए, नेता चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं, पर किसी को इसकी परवाह नहीं। हनुमानगढ़ का युवा वर्ग शिक्षा और रोजगार की तलाश में असमंजस में है, और बुजुर्ग तो केवल अपने संघर्षों को याद करते रह गए हैं।

इस दौरान, जनता की आवाज को उठाने वाला कोई नहीं है। हनुमानगढ़ की गलियों में गूंजने वाली सिसकियां केवल समस्याओं की दीवार को और मजबूत कर रही हैं। क्या हनुमानगढ़ की जनता कब तक रोएगी? कब तक उन्हें राजनीतिक चक्रीयता का शिकार होना पड़ेगा? इस तरह के स्वार्थपूर्ण राजनीति में, हनुमानगढ़ की उम्मीदों के सपने बिखर रहे हैं।

समाज के हर वर्ग में निराशा का माहौल पैदा हो गया है। बाजार में व्यापारियों की आवाजें भूली जा रही हैं, किसान अपनी उपज को सही मूल्य नहीं मिल पाने की चिंता में हैं, और छात्र जीवन के बेहतर भविष्य की तलाश में निराश हैं। हनुमानगढ़ अब एक ऐसा क्षेत्र बन गया है, जिसे राजनीति ने अपने स्वार्थ में पूरी तरह से जकड़ लिया है।

इस संकट के समय, हनुमानगढ़ की जनता को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होना होगा। अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमें और भी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह समय है जागरूकता फैलाने और संघर्ष का। हनुमानगढ़ की धरती की सच्चाई को उजागर करने के लिए, हमें एकजुट होकर अपनी आवाजें उठानी होंगी।

हमें यह समझने की जरूरत है कि बहसों और तर्कों से बढ़कर, वास्तविकता को पहचानना और उसे सही दिशा में लेकर चलना आवश्यक है। अगर हम एकजुट हो जाएं, तो राजनीति के बुरे धत्कारों को समाप्त कर सकते हैं। हनुमानगढ़ के नागरिकों को अब अपनी सीमाओं को पार करने की आवश्यकता है, ताकि वे अपनी आवाज को प्रभावी ढंग से सुना सकें।

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